Wednesday, June 17, 2009

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to Anandam music
date Jun 17, 2009 1:52 PM
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नई दिल्ली। आनंदम् की 11वीं काव्य गोष्ठी हमेशा की तरह पश्चिम विहार में जगदीश रावतानी जी के निवास स्थान पर संपन्न हुई। पिछली गोष्ठी में जहाँ कवि राकेश खंडेलवाल वाशिंगटन, अमरीका से पधारे थे, वहीं इस बार भी अमरीका के अटलांटा नगर से श्रीमती संध्या भगत की उपस्थिति ने गोष्ठी को अंतर-राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान कर दिया।


कार्यक्रम के चर्चा सत्र में "कविता एवं ग़ज़ल का समाज के प्रति योगदान" विषय पर डॉ. विजय कुमार ने अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि काव्य के माध्यम से कही हुई बातों का समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रेम सहजवाला ने इस विषय पर अपने विचार रखते हुए इस बात को रेखांकित किया कि साहित्य को समाज की जितनी सेवा करनी चाहिए उतनी कई कारणों से हो नहीं पा रही। जगदीश रावतानी ने इस चर्चा को व्यावहारिक मोड़ देते हुए कहा कि हम सभी साहित्यकारों को अपने लेखन के द्वारा समाज में घट रही भ्रष्टाचार की घटनाओं को भी उजागर कर सरकार तक अपनी बात कारगर ढंग से पहुँचानी चाहिए। उदाहरण के लिए आजकल खान-पान की वस्तुओं जैसे दूध, अनाज व फल-सब्जियों तक में जहरीले ससायन मिलाए जा रहे हैं, ऐसे विषयों पर भी रचनाएँ लिखकर विभन्न माध्यमों में प्रकाशित करवाई जाएँ।

दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी शुरू करने से पहले हाल ही में दिवंगत कवियों सर्वश्री ओम प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड सिंह गुज्जर की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन धारण किया गया। जगदीश रावतानी ने श्रद्धांजलि स्वरूप ओम प्रकाश आदित्य की एक हास्य रचना भी सुनाई। तत्पश्चात उपस्थित कवियों ने अपनी रचनाओं से लोगों का मन मोह लिया। कुछ रचनाएँ देखें-

जगदीश रावतानी-आनंदम के साथ प्रेमचंद सहजवाला
नईम बदायूँनी-
हमसे ज़िक्रे बहार मत कीजे
हमने देखा नहीं बहारों को

मजाज़ अमरोही-
तूने अए चारागर नहीं देखा
देखना था मगर नहीं देखा

दर्द देहलवी
दर्द देहलवी-
पहले तो चरागों की कमी से थे परेशाँ
अब इतना उजाला है दिखाई नहीं देता

डॉ. विजय कुमार-
कुछ तो दीदार की ऐ हमनवा सूरत निकले
फिर तेरी याद ने तूफान उठा रक्खा है

जगदीश रावतानी-
था ये बेहतर कि क़त्ल कर देते
रोते-रोते मरा नहीं होता
क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी गर गिरा नहीं होता

भूपेन्द्र कुमार-
है मुश्किल यूँ ख़ुदा की बंदगी में ख़ुद को पा लेना
मगर कहते हैं अब तो ख़ुद को ही अवतार चुटकी में
है इक अरसा लगा मुझे ग़ज़ल का फ़न समझने में
नमन करता हूँ उनको जो कहें अशआर चुटकी में

मनमोहन शर्मा तालिब-
सच्चाई के होठों पे फरिश्तों की दुआ है
सच्चाई का नाम ही ज़माने में ख़ुदा है

प्रेमचंद सहजवाला-
शोरीदा शहर में मुझे आता है ये ख़याल
दिल में ज़रा सी देर को उज़्लत बनी रहे

पंडित प्रेम बरेलवी-
आदमी आदमी को कुचलने लगा
दिल करे भी तो क्या अब करे जुस्तजू

सत्यवान-
दम तोड़ती है कला मेरी रद्दी काग़ज़ के पन्नों पर
वो सजे मंच तालियों की गूँज,
बनते हैं कैसे कलाकार मैं क्या जानूँ

ओ.पी. बिश्नोई सुधाकर-
पेड़ उगाकर हरे भरे, हरियाली को लाएँगे
जीवों की करेंगे रक्षा, सुखद पर्यावरण बनाएँगे

मुनव्वर सरहदी
साक्षात भसीन-
आँखों में तैरते ख़ून को, हमने यूँ पढ़ के देखा है
नामुमकिन टलता हादसा, जिसे होने से रोका है

संध्या भगत-
मुझको भी कोख में पलने दे
माँ, मेरा भी ये वास है
सात सपूतों वाली ये माँ
इक आँगन की फिर भी आस है

मुनव्वर सरहदी-
जो तेरी तस्बीह के दाने मुनव्वर रोक है ले
वो तेरा दुश्मन है, ऐसे आश्ना को छोड़ दे

इसके अतिरिक्त फ़ख़रुद्दीन अशरफ तथा शैलेश सक्सैना ने भी अपनी उम्दा रचनाएँ प्रस्तुत की जिन्हें इस गोष्ठी की रिकॉर्डिंग में सुना जा सकता है।



फ़ख़रुद्दीन अशरफ



शैलेश सक्सैना

Monday, June 1, 2009

जगदीश रावतानी आनंदम की तरही ग़ज़ल

दिल अगर फूल सा नही होता

यू किसी ने छला नही होता


था ये बेहतर कि कत्ल कर देती
रोते रोते मरा नही होता


दिल में रहते है दिल रुबाओं के
आशिको का पता नही होता

ज़िन्दगी ज़िन्दगी नही तब तक
ishk जब तक हुआ नही होता


पाप की गठरी हो गई भारी
वरना इतना थका नही होता


होश में रह के ज़िन्दगी जीता
तो यू रुसवा हुआ नही होता


जुर्म हालात करवा देते है
आदमी तो बुरा नही होता


ख़ुद से उल्फत जो कर नही सकता
वो किसी का सगा नही होता

क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी गर गिरा नही होता