Saturday, December 24, 2011

WHAT IS MORE IMPORTANT ?....SATIRE

Jagdish Rawtani


Death keeps no calender,,
Not even in Calcutta, Sorry, Kolkata

Fire in hospital, more than hundred lost their lives
some left children orphaned some made widows their wives.

Govt straightway says it is not responsible
No authority is even made answerable

Hospital views it as one unfortunate accident
New power has thrown onus on previous Government
They greedy for 34 years were always negligent

Where in Calcutta
No Baba Kolkata

Let us respect our language and its accent
It should always sound dignified and decent

Six year innocent boy says happily, wiping out his mothers tears
You will not be beaten anymore, along with baaba have gone your fears

She suppresses but flow of tears goes faster
Life to an Indian widow looks now darker

Hooch has taken away husband along with hundred more
Pathetic News highlighted but for a few days on the fore

Here again starts blame game
Excuses given are all very lame

Where in Calcutta
No no say Kolkata
Learn something from Maharashtrians

It is important to know pronunciation correct
Because our very entity it is going to protect

God, I do not possess your address otherwise I would drop
and ask what prompts you to quickly cut some of your crop

He was just 21 day old and you called him back
sympathy, Mamta, mercy you almighty also lack

See how much pain the grieved have endured
No sympathy no compensation has been assured

May I humbly ask what is this, design or default ?
You say it was not your but sweepers fault

You are also desirous of saving your entity and , therefore, playing blame game
Knowing not what is more important (language,entity or life) I am sunk into shame

Wednesday, November 23, 2011

‘आनंदम’ नवंबर गोष्ठी में शायरी की धूम






रिपोर्ट – आनंदम रिपोर्ट विभाग
दि. 14 नवमबर 2011 को जगदीश रावतानी की ‘आनंदम संगीत व साहित्य सभा’ की मासिक गोष्ठी इस बार भी ज़ोरदार रही. प्रतिमाह की तरह यह गोष्ठी नई दिल्ली के कस्तूरबा गाँधी मार्ग स्थित हिमालय हाऊस में मैक्स न्यू योर्क के गोष्ठी कक्ष में हुई. इस गोष्ठी की सदारत प्रसिद्ध शायर सैफ सहरी ने की तथा इस में जाम बिजनौरी, मासूम गाजियाबादी, साज़ देहलवी, वीरेंद्र कमर, आरिफ देहलवी, साज़ देहलवी, दर्द देहलवी, भूपेंद्र कुमार, प्रेमचंद सहजवाला, नागेश चन्द्र, निखिल आनंद गिरि, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, आशीष सिन्हा कासिद, शाहीना खान, शकील इब्ने नज़र, समर हयात नेगान्बी ने भाग लिया. हमेशा की तरह इस गोष्ठी में भी गज़ल का ही राज रहा. एक से बढ़ कर एक उम्दा गज़लों से सभा कक्ष वाहवाही से गूंजता रहा. समर हयात नेगान्बी के एक शेर का नायाब अंदाज़ देखें:
पहले खिज़ां में लुट गए और अब बहार में
नुक्सान पूरे साल रहा कारोबार में
साज़ देहलवी के इस शेर में मुल्क की तस्वीर उजागर हो गई:
अब तक नहीं मिला है कोई कारवां का मीर
जब खिज्र ही ना हो तो क्या रस्ता दिखाई दे
दर्द देहलवी ने भी मुल्क की तस्वीर एक और ही अंदाज़ में पेश की :
वो अपने दौर की तारिख कैसे लिखेंगे
जो कमसिनी में मशीनों पे काम करते हैं
युवा शायर निखिल आनंद गिरि ने अति सुंदर गज़ल पढ़ी जिस के एक शेर:
आज बन बैठे अदू कैसे मुहब्बत के ‘निखिल’
वो भी थे दिन कि वो मजनू की तरह लगते थे
मासूम गाजियाबादी हमेशा की तरह ज़ोरदार रहे:
कोई पुरखों की ज़मीनें बेच कर भी बे सुकूं
हम गुबारे बेच कर भी सो गए आराम से
किसी भी ज़बान के अदीब के लिये अदब की क्या अहमियत है, यह वीरेंद्र कमर के इस शेर से स्पष्ट है:
हम अदब के फ़कीर हैं साहिब
अपनी दौलत को अपने घर रखिये
प्रेमचंद सहजवाला ने छोटी बह्र में एक अच्छी गज़ल पढ़ी:
आसमां तक ना पहुँची पतंग
रास्तों में अटकती रही
जिंदगी हर नई शक्ल में
आदमीयत परखती रही
कुछ और शेर इस प्रकार थे:
जाम बिजनौरी
जब भी पूछेगी सहेली तेरे रोने का सबब
मेरी तस्वीर तेरी आँख से जारी होगी
ममता किरण
साँसें भी अपनी छोड़ के आ जाऊँ तेरे पास
कैसी अजब कशिश है ये तेरी पुकार में

शकील इब्ने नज़र
देखिये कब तक मुकम्मल मौत हो
मरते मरते इक ज़माना हो गया
नागेश चन्द्र
अपनी भी पहचान रखिये
इन परों में जान रखिये
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी
कुछ किसी से भी माँगना न पड़े
हमने मंगा है बस यही सब से
शाहीना खान
हाल बे हाल आँख पुरनम परेशां गेसू
तू ने देखा ही नहीं ओ छोड़ के जाने वाले

आरिफ देहलवी
वो पहला हिन्दुस्तान कहाँ वो हिंद की पहली आन कहाँ
जो कल सोने की चिड़िया था उसकी है आज वो शान कहाँ
आनंदम अध्यक्ष जगदीश रावतानी
ज़िन्दगी ने हम पे ढाया ही नहीं कोई सितम
डोर थी सुलझी हुई हम खुद ही उलझाने लगे
गोष्ठी के सदर सैफ सहरी ने एक बहुत प्रभावशाली गज़ल पेश की जिस का मतला था:

लम्हा लम्हा मेरी माँ को आस है मेरे आने की
रहता हूँ परदेस में लेकिन ख्वाहिश है घर जाने की
और मकता था:
आईना हैं टुकड़े टुकड़े हो जाएंगे सैफ मगर
हिम्मत तो कर दी है हमने पत्थर से टकराने की
गोष्ठी का संचालन हमेशा की तरह ममता किरण ने अपने आकर्षक अंदाज़ में किया. अंत में आनंदम अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने सभी शायरों का धन्यवाद कर के गोष्ठी संपन्न की.

Saturday, November 12, 2011

आनंदम विचार घोष्टि- ०८-११-२०११



‘क्रोध हमारा सर्वाधिक विनाशकारी शत्रु’ –
‘आनंदम’ की नवम्बर गोष्ठी क्रोध को व्यवस्थित करने पर.
रिपोर्ट – प्रेमचंद सहजवाला
‘आनंदम संगीत व साहित्य सभा’ प्रतिमाह एक काव्य गोष्ठी के अतिरिक्त एक विचार गोष्ठी भी आयोजित करती है. दि. 8 नवंबर को नई दिल्ली के कस्तूरबा गाँधी मार्ग स्थित हिमालय हाऊस में मैक्स न्यू योर्क सभागार में अशोक मर्चंट का व्याख्यान रखा गया कि क्रोध/गुस्से को कैसे व्यवस्थित किया जाए. श्री मर्चंट ने अन्याय या सामाजिक विषमता को ही क्रोध या गुस्से का एक महत्वपूर्ण कारण बताया. उन्होंने यूनानी दार्शनिक प्लेटो का यह कथन बेहद महत्वपूर्ण बताया कि ‘कोई भी व्यक्ति सायास बुरा नहीं है.’ परंतु साथ में श्रीमद्भगवत गीता का उद्धरण दे कर यह भी स्पष्ट किया कि क्रोध हमारा सर्वाधिक विनाशकारी शत्रु है. उन्होंने मानव मन में शुक्रगुजारी तथा आत्म-संतुष्टि के अभाव को भी क्रोध का एक महत्वपूर्ण कारण बताया. उन्होंने कहा कि धार्मिक उपदेश इस कदर विकृत हो गए हैं और उन्हें स्वार्थ लिप्त धर्मोपदेशकों द्वारा इस तरह से तोडा मरोड़ा गया है कि ईश्वर ही व्यापर हो गया है और अधिकाधिक जनता पूजा अनुष्ठानों में कैद हो गए हैं. वे धर्मोपदेशक पुरुषों व महिलाओं के शिकार से हो गए हैं. समाज में कोई भी सार्थक परिवर्तन इस बात की मांग करता है प्रत्येक व्यक्ति में बचपन से ही नैतिकता का संसकर पड़े. समाज में व्यक्तियों तथा संस्थानों में नैतिकता का निर्माण कुंठा आक्रोश व प्रतिस्पर्धा को कम करने में अहम भूमिका निभाता है. यह सामजिक न्याय तथा खुशहाली लाने में सहायक सिद्ध होता है. उन्होंने कहा कि एक ज्ञान तंत्र के रूप में धर्म को अन्य ज्ञान तंत्रों यथा विज्ञानं के साथ समन्वय कर के चलना पड़ेगा.
लगभग एक घंटे के भाषण के बाद सभागार में उपस्थित श्रोता गण ने भी अपने अपने विचार प्रस्तुत किये तथा प्रश्न पूछे. सभागार में उपस्थित श्री भूपेंद्र ने प्रश्न उठाया कि क्या कुछ हद तक गुस्सा ज़रूरी नहीं है, क्योंकि कई गलत गतिविधियां समाप्त करने के लिये या अनुशासन स्थापित करने के लिये गुस्सा ज़रूरी है. श्री मर्चंट ने इस विचार पा काफी सहमत भी जताई.
श्री अशोक मर्चंट भारत के ‘द टेम्पल ऑफ अंडरस्टैंडिंग’ के महासचिव हैं तथा ‘सर्वोदय अंतर्राष्ट्रीय न्यास’ दिल्ली अध्याय के अध्यक्ष भी हैं.
गोष्ठी के अंत में ‘आनंदम’ अध्यक्ष श्री जगदीश रावतानी ने श्री मर्चंट का तथा सभी उपस्थित लोगों का धन्यवाद किया व् घोषित किया कि नवंबर माह की काव्य गोष्ठी दि. 14 नवंबर शाम को इसी सभागार में होगी.

Friday, October 21, 2011






‘आनंदम’ गोष्ठी में शायरी की धूम
रिपोर्ट – आनंदम रिपोर्ट अनुभाग

दि. 10 अक्टूबर 2011 को नई दिल्ली के कस्तूरबा गाँधी स्थित मैक्स न्यू योर्क सभागार में जगदीश रावतानी की ‘आनंदम संगीत व साहित्य सभा’ की मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ. इस गोष्ठी में ममता किरण, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, वीरेंद्र कमर, प्रेमचंद सहजवाला, मजाज़ अमरोही, मुनव्वर सरहदी, नागेश चन्द्र, उपेन्द्र दत्त, अब्दुल हमीद साज़ देहलवी, रमेश सिद्धार्थ, भूपेंद्र कुमार, इर्गान तालिब, सिकंदराबादी, दर्द दहलवी, सरफराज़ फराज़ देहलवी ने भाग लिया. गोष्ठी का संचालन ममता किरण ने किया. गोष्ठी में गज़ल की धूम रही और एक से बढ़ कर एक शेरों पर सभागार में वाह वाह की धूम मची रही. युवा कवि निखिल आनंद गिरि गाँव की मिट्टी की गंध मन में समाए बिहार से दिल्ली आ कर बस गए सो उनके शेरों में गांव से विलग होने का दर्द स्पष्ट झलकता है, जैसे:
हमारे गांव यादों में यहाँ हर रोज़ मरते हैं
मुझे तो ये शहर ख्वाबों का कब्रिस्तान लगता हैं.

गज़ल सुनाने के लिये जहाँ दर्द देहलवी, साज़ देहलवी और सरफराज़ फराज़ देहलवी जैसे हस्ताक्षर मौजूद हों वहाँ सुनने वालों की कैफियत खुद ब खुद समझी जा सकती है. इन शायरों के कुछ शेर:
दर्द देहलवी
आंसुओं में खून की लाली नज़र आने लगी
अब तो मेरे दर्द का अहसास होना चाहिए

साज़ देहलवी
बागबां को नाज़ था जिस की लताफत पर कभी
हम वही गुल हैं मगर खारों से पहचाने गए
सरफराज़ फराज़ देहलवी
फिरकावन्दों ने चमन में हर तरफ बोए हैं खार
अहले दिल को बीज अब उल्फत का बोना चाहिए
प्रेमचंद सहजवाला अक्सर वतन से जुड़ी शायरी करते हैं सो उन्होंने आजादी के बाद देश के अवाम के मोहभंग को कुछ कुछ इन लफ़्ज़ों में व्यक्त किया:
हमारे नाम आकाओं ने इक परवाज़ लिखी थी
मगर इस अह्द में पंछी हुआ बे आसमां क्यों है
वीरेंदर कमर
ज़िंदगी की डायरी भर चली है वैसे तो
एक वर्क खाली है आओ मैं तुम्हें लिख दूं.

लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने सदा की तरह प्रभावशाली शेर सुनाए:
अपने कट जाने से बढ़ कर ये फिकर पेड़ को है
घर परिंदे का भला कैसे उजड़ता देखे
मुश्किलें अपनी बढ़ा देता है इन्सां ऐसे
अपनी गर्दन पे किसी और के चेहरा देखे.

आनंदम अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने अपनी गज़ल में यह भाव रखा कि कलियुग केवल अब नहीं है कलियुग तो तब भी था जब राम और कृष्ण थे. एक शेर:

ना जाने किस ने कलियुग आज के युग को बता डाला
था क्या तब जब युधिष्ठिर अपनी पत्नी हार आया था

गोष्ठी के अंत में जगदीश रावतानी ने सभी कवियों का धन्यवाद किया व घोषित किया कि अगली गोष्ठी हर माह की तरह एक विचार गोष्ठी होगी जिसमें किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर कोई विफ्चारक अपने विचार प्रस्तुत करेगा.

Friday, October 14, 2011

विचार घोष्टि



आध्यात्मिकता पर ‘आनंदम संगीत व साहित्य सभा’ की विचार गोष्ठी
रिपोर्ट – प्रेमचंद सहजवाला

जगदीश रावतानी की ‘आनंदम संगीत व साहित्य सभा’ अपनी मासिक काव्य गोष्ठी के अतिरिक्त प्रतिमाह एक विचार गोष्ठी का आयोजन भी करती है जिसमें विभिन्न विषयों पर कोई विशेषज्ञ अपने cविचार प्रस्तुत करता है और विशेषज्ञ के वक्तव्य के बाद उपस्थित लोग अपने प्रश्न प्रस्तुत करते हैं. दि. 27 सितंबर 2011 को नई दिल्ली के हिमालय हाऊस स्थित मैक्स न्यू योर्क सभागार में श्री चाँद भरद्वाज ने आध्यात्म विषय पर लगभग एक घंटे का एक सारगर्भित भाषण दिया. श्री भरद्वाज के भाषण की उपस्थित सभी लोगों ने इसीलिये प्रशंसा की कि वह वैज्ञानिक रूप से प्रामाणिक् तथा तर्कसंगत था, हालांकि उनकी बातों से कुछ उपस्थित लोग असहमत भी थे. अपनी बात कहने का श्री भरद्वाज को क्यों कि अपर्याप्त समय मिला था अतः यह निर्णय लिया गया कि इसी विषय पर एक और लंबा सत्र आयोजित किया जाएगा. लेकिन उनका यह कथन कि जहाँ भी ध्यान जाता है, ऊर्जा का प्रवाह द्रष्टव्य होता है. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए तथा अपने इच्छित लक्ष्य पर एकाग्रता रखनी चाहिए. श्री जगदीश रावतानी ने अंत में श्री भरद्वाज व उपस्थित लोगों का धन्यवाद किया तथा घोषणा की कि ‘आनंदम’ की अगली विचार गोष्ठी अक्टूबर के चौथे सोमवार को इसी स्थल पर होगी.

Tuesday, September 13, 2011

आनंदम' की सितम्बर २०११ की घोष्टि










‘आनंदम’ की सितम्बर काव्य गोष्ठी

रिपोर्ट – आनंदम रिपोर्ट अनुभाग

‘आनंदम’ संगीत व साहित्य सभा की सितम्बर माह की काव्य गोष्ठी दि. 12 सितम्बर

को 2011 नई दिल्ली के कस्तूरबा गाँधी स्थित हिमालय हाऊस में मैक्स न्यू यॉर्क के

सभागार में समपन्न हुई.

सहजवाला, अलका सिन्हा, दर्द देहलवी, साज़ देहलवी, वीरेंद्र कमर, मनुज, शैलेश

सक्सेना, शशि जैन, अनिल भंडारी, आदर्श शुक्ल के. मोहन, शोभना मित्तल,

अब्दुल हमीद ‘साज़’, भूपेन्द्र कुमार, पूनम अग्रवाल, शांति अग्रवाल, व गोपाल

हरे आदि कवियों ने अपनी कविताओं गज़लों का पाठ किया.

अलका सिन्हा ने एक सशक्त कविता पढ़ी, जिस की कुछ पंक्तियाँ हैं:

जिंदगी को जिया मैंने इतना चौकस हो कर/ जैसे कि नींद में भी रहती है सजग/

कोई चढती उम्र की लड़की/ कि कहीं उसके पैरों से चादर ने उघड़ जाए.

‘साज़’ देहलवी बहुत शानदार गज़ल कहने के लिये दिल्ली की गोष्ठियों में सुप्रसिद्ध है,

उनकी गज़ल का एक सशक्त शेर:

मुझको शिकवा नहीं बादल की तुनक आबी पर

‘साज़’ आँखों से बरस जाता है सावन मेरा.

साज़ की तरह ज़र्फ देहलवी भी एक मंजे हुए शायर हैं, जैसे:

दौरे दुनिया अब कहाँ निस्बत सुहानी रह गई,

वो ज़माना तो बस अब बन कर कहानी रह गह गई.

वीरेंद्र ‘कमर’ की गज़ल का एक शेर:

इस गोष्ठी में ज़र्फ देहलवी, मुनव्वर सरहदी, प्रेमचंद

‘कमर’ दीमक अना की चाटने लग जाए जिसका तन

हसद की आग से वो शख्स सारी उम्र जलता है.

भूपेन्द्र ने शानदार गज़ल प्रस्तुत की:

पसीना जो बहा कर रोज़ रोटी की जुगत करते

ये किस्मत भी उन्हीं मेहनतकशों पर तंज़ कसती है

कुल मिला कर गीत गज़ल दोहों व कविता का अच्छा समां बंध गया. ‘दर्द’ देहलवी

लहू में डूबे हुए जिस्म तो नज़र आएं

अजीब बात है कातिल नज़र नहीं आते.

प्रेमचंद सहजवाला ने एक तरही गज़ल प्रस्तुत की जिस का तरही मिस्रा फैज़ अहमद

फैज़ की गज़ल से था: ‘कातिल से रस्मो राह सिवा कर चुके हैं हम...’ इस गज़ल से एक शेर:

जिन मुल्जिमों ने रौशनी ज़ुल्मत से कैद की

उनको ज़मानातों पे रिहा कर चुके हैं हम.

मनुज सिन्हा ने अपने दोहों से प्रभावित कर दिया:

रोज़ रोज़ पूजा करूँ, रक्खूँ दीप जलाय,

या रब अब आतंक से देश मुक्त हो जाए.

‘आनंदम’ अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने एक सशक्त गज़ल पढ़ी. एक शेर:

दिन ईद का है आ के गले से लगा मुझे

होली पे जैसे तू मुझे मलता गुलाल है.

गोष्ठी संपन्न करते हुए ‘आनंदम’ अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने सभी कवियों का

Saturday, August 13, 2011

‘आनंदम’ की 26वी रंगारंग काव्य गोष्ठी

















































‘आनंदम संगीत व साहित्य संस्था’ की काव्य गोष्ठी प्रतिमाह नई दिल्ली के कस्तूरबा गाँधी मार्ग स्थित हिमालय हाऊस में मैक्स न्यू यॉर्क के सभागार में होती है. अगस्त महीने में देश भर में स्वतंत्रता से जुड़ी असंख्य काव्य गोष्ठियां होती हैं. देश अनेकों समस्याओं, अप्रिय घटनाचक्र व अप्रिय विवादों के बावजूद आजादी के इस माह को एक पर्व की तरह मनाता है. दि. 8 अगस्त 2011 को ‘आनंदम’ संस्था की भी एक रंगारंग काव्य गोष्ठी हुई जिस में कवि भूपेन्द्र कुमार, प्रेमचंद सहजवाला, मुनव्वर सरहदी, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, सरफराज़ फराज़ देहलवी, शैलेश सक्सेना, चाँद भरद्वाज, अब्दुल हमीद, साज़ देहलवी, अजय अक्स, अब्दुल रहमान मंसूद, लालचंद, अब्दुल रहमान मंसूर आदि कवियों ने काव्यपाठ किये. इस गोष्ठी की अध्यक्षता शायर मुनव्वर सरहदी ने की तथा संचालन ममता किरण ने किया. ‘आनंदम’ अध्यक्ष जगदीश रावतानी भी मंच पर उपस्थित थे.
गीत गज़ल व शायरी के विभिन्न रंगों का रस इस गोष्ठी में आने वाले कवियों से प्राप्त हुआ. देश की वर्तमान स्थिति पर लक्ष्मी शंकर वाजपेयी के दोहे दो टूक तरीके से बेहद सटीक चोट करते रहे. जैसे:
सुनो अली बाबा सुनो, जनता का यह शोर
कड़े नियंत्रण में रखो, अपने सारे चोर!
अयोध्या विवाद के फैसले पर प्रेमचंद सहजवाला का यह अप्रत्यक्ष किन्तु प्रत्यक्ष सा लगता शेर:
अदालत में गए ईश्वर पे हम सब फैसला सुनने,
मगर अफ़सोस सब आए फकत ईश्वर नहीं आया.
कवि भूपेन्द्र की कविता की कुछ पंक्तियाँ:
तन का जब जब सौदा करना पड़ता है,
मन को तब तब पल पल मरना पड़ता है.
शायर अब्दुल रहमान मंज़ूर की गज़ल के दो शेर:
सिर्फ इतना सवाल है मेरा,
क्या तुम्हें भी खयाल है मेरा,
तुम जहाँ साथ छोड़ जाओगे,
बस वहीं इंतकाल है मेरा.

अजय अक्स
यार थे जो पुराने गए,
हाय वो भी ज़माने गए
कृष्ण अब तो सुदर्शन उठा
बांसुरी के ज़माने गए
‘आनंदम’ अध्यक्ष जगदीश रावतानी
शायरी करने जो लगा हूँ मैं,
लगता है खुद से अब मिला हूँ मैं
अब नहीं चुभते ताने अपनों के
चांदनी धुप और हवा हूँ मैं
सरफराज़ फराज़ देहलवी
सौंप कर उस बेवफा को ही चरागे दिल मियां
हमने अपनी जिंदगी में खुद अँधेरा कर दिया
संचालिका ममता किरण ने तरन्नुम में एक मधुर गीत सुनाया जिसने पूरे सभागार का मन मोह लिया:
भीगा भीगा मन डोल रहा/ इस आंगन से उस अंगा/ यादों की अंजुरी से फिसले/जाने कितने मीठे लम्हे/ लम्हों में दादी नानी है
अंत में गोष्ठी अध्यक्ष मुनव्वर सरहदी ने खट्टे मीठे कई शेर सुनाए जिन से सभागार कहकहों से भर गया. पर प्रारंभ में उन्होंने कुछ गंभीर शायरी भी की:
अपना पाना नहीं रहा मक्सद,
अपना आईन सिर्फ खोना है
कौन समेट लेगा ये नहीं मालूम,
हम को बोना है सिर्फ बोना है
गोष्ठी को संपन्न करते हुए ‘आनंदम अध्यक्ष’ जगदीश रावतानी ने सभी कवियों को धन्यवाद किया व स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम बधाइयाँ दीं.

Sunday, July 10, 2011

Anandam Ki Khoobsurat Kavya Goshti--4th July 2011

मैक्स न्यू-यॉर्क सभागार में ‘आनंदम’ की काव्य गोष्ठी संपन्न
रिपोर्ट – प्रेमचंद सहजवाला
जगदीश रावतानी द्वारा संचालित ‘आनंदम संगीत व साहित्य संस्था’ की जुलाई माह की काव्य गोष्ठी 9 जुलाई 2011 को कस्तूरबा गाँधी मार्ग स्थित हिमालय हाऊस के सभागार में संपन्न हुई. इस गोष्ठी की अध्यक्षता विख्यात कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने की तथा मासूम गाज़ियाबादी, लक्ष्मी शंकर बाजपेई, ज़र्फ ‘देहलवी’ बिशन लाल, विशाल ‘बाग’, भूपेंद्र कुमार, नरेश कुमार, ए.एच. ‘साज़’, आसिफ अली, अजय ‘अक्स’, वीरेंद्र ‘कमर’, पूनम अगरवाल, रवीन्द्र शर्मा ‘रवि’, शांति अगरवाल, अबुल फैज़ अज़्म ,सहरियानवी’, दर्द ‘देहलवी’, अहमद अली बर्की ‘आज़मी’, सुरेश यादव, रंजन अग्रवाल, मुनव्वर ‘सरहदी’, ज़फर आदिल व मोइन अहमद ने भाग लिया. इस गोष्ठी का संचालन ममता किरण ने किया.
गोष्ठी में गज़ल गीत व छंद मुक्त कविता की अच्छी धूम रही. उदहारण के तौर पर ज़र्फ देहलवी की एक गज़ल का यह शेर:
दुनिया के लोग खुद पे नज़र फेंकते नहीं
आईना दिखाते हैं मगर देखते नहीं.
सभागार मासूम गाज़ियाबादी के शेरों पर वाह वाह कर के झूम उठा:
कोई पुरखों की ज़मीनें बेच कर भी पुर-सुकूँ
हम गुबारे बेच कर भी सो गए आराम से.
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी की संक्षिप्त छंद गज़ल:
टू है बादल / तो बरसा जल.
एक शून्य को / कितनी हलचल.
नाम ही माँ का /है गंगाजल.
‘आनंदम’ संस्थापक जगदीश रावतानी की कविता पर भी खूब वाह वाह की दाद मिली : ‘जल्दी मत कर देर हो जाएगी/ पचास वर्ष की आयु जब होती है पार/ मनुष्य उतावलेपन में डूब करता है विचार/ उतावलेपन में मनुष्य हर कार्य जल्दी जल्दी करने लगता है/ स्वप्न अधूरे ना रह जाएं/ ये सोच कर डरने लगता है....
संचालक ममता किरण ने एक कविता सुनाई ‘शिकायत’:
किताबों के होंठों पर शिकायत है इन दिनों/कि अब उनमें महकता खत रख कर/ नहीं किया जाता / उनका आदान प्रदान.
गोष्ठी की सम्पन्नता के तौर पर अध्यक्ष बुद्धिनाथ मिश्र ने अपने रसीले गीतों को तरन्नुम में गा कर सभागार में रस घोल दिया:
एक बार और जाल फेंक रे मछेरे / जाने किस मछली में बंधन की चाह हो.
अंत में जगदीश रावतानी ने सभी कवियों का धन्यवाद कर के गोष्ठी संपन्न की.

Kuch chitra prastut hain.