मैक्स न्यू-यॉर्क सभागार में ‘आनंदम’ की काव्य गोष्ठी संपन्न
रिपोर्ट – प्रेमचंद सहजवाला
जगदीश रावतानी द्वारा संचालित ‘आनंदम संगीत व साहित्य संस्था’ की जुलाई माह की काव्य गोष्ठी 9 जुलाई 2011 को कस्तूरबा गाँधी मार्ग स्थित हिमालय हाऊस के सभागार में संपन्न हुई. इस गोष्ठी की अध्यक्षता विख्यात कवि बुद्धिनाथ मिश्र ने की तथा मासूम गाज़ियाबादी, लक्ष्मी शंकर बाजपेई, ज़र्फ ‘देहलवी’ बिशन लाल, विशाल ‘बाग’, भूपेंद्र कुमार, नरेश कुमार, ए.एच. ‘साज़’, आसिफ अली, अजय ‘अक्स’, वीरेंद्र ‘कमर’, पूनम अगरवाल, रवीन्द्र शर्मा ‘रवि’, शांति अगरवाल, अबुल फैज़ अज़्म ,सहरियानवी’, दर्द ‘देहलवी’, अहमद अली बर्की ‘आज़मी’, सुरेश यादव, रंजन अग्रवाल, मुनव्वर ‘सरहदी’, ज़फर आदिल व मोइन अहमद ने भाग लिया. इस गोष्ठी का संचालन ममता किरण ने किया.
गोष्ठी में गज़ल गीत व छंद मुक्त कविता की अच्छी धूम रही. उदहारण के तौर पर ज़र्फ देहलवी की एक गज़ल का यह शेर:
दुनिया के लोग खुद पे नज़र फेंकते नहीं
आईना दिखाते हैं मगर देखते नहीं.
सभागार मासूम गाज़ियाबादी के शेरों पर वाह वाह कर के झूम उठा:
कोई पुरखों की ज़मीनें बेच कर भी पुर-सुकूँ
हम गुबारे बेच कर भी सो गए आराम से.
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी की संक्षिप्त छंद गज़ल:
टू है बादल / तो बरसा जल.
एक शून्य को / कितनी हलचल.
नाम ही माँ का /है गंगाजल.
‘आनंदम’ संस्थापक जगदीश रावतानी की कविता पर भी खूब वाह वाह की दाद मिली : ‘जल्दी मत कर देर हो जाएगी/ पचास वर्ष की आयु जब होती है पार/ मनुष्य उतावलेपन में डूब करता है विचार/ उतावलेपन में मनुष्य हर कार्य जल्दी जल्दी करने लगता है/ स्वप्न अधूरे ना रह जाएं/ ये सोच कर डरने लगता है....
संचालक ममता किरण ने एक कविता सुनाई ‘शिकायत’:
किताबों के होंठों पर शिकायत है इन दिनों/कि अब उनमें महकता खत रख कर/ नहीं किया जाता / उनका आदान प्रदान.
गोष्ठी की सम्पन्नता के तौर पर अध्यक्ष बुद्धिनाथ मिश्र ने अपने रसीले गीतों को तरन्नुम में गा कर सभागार में रस घोल दिया:
एक बार और जाल फेंक रे मछेरे / जाने किस मछली में बंधन की चाह हो.
अंत में जगदीश रावतानी ने सभी कवियों का धन्यवाद कर के गोष्ठी संपन्न की.
Kuch chitra prastut hain.