Friday, October 21, 2011
‘आनंदम’ गोष्ठी में शायरी की धूम
रिपोर्ट – आनंदम रिपोर्ट अनुभाग
दि. 10 अक्टूबर 2011 को नई दिल्ली के कस्तूरबा गाँधी स्थित मैक्स न्यू योर्क सभागार में जगदीश रावतानी की ‘आनंदम संगीत व साहित्य सभा’ की मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ. इस गोष्ठी में ममता किरण, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, वीरेंद्र कमर, प्रेमचंद सहजवाला, मजाज़ अमरोही, मुनव्वर सरहदी, नागेश चन्द्र, उपेन्द्र दत्त, अब्दुल हमीद साज़ देहलवी, रमेश सिद्धार्थ, भूपेंद्र कुमार, इर्गान तालिब, सिकंदराबादी, दर्द दहलवी, सरफराज़ फराज़ देहलवी ने भाग लिया. गोष्ठी का संचालन ममता किरण ने किया. गोष्ठी में गज़ल की धूम रही और एक से बढ़ कर एक शेरों पर सभागार में वाह वाह की धूम मची रही. युवा कवि निखिल आनंद गिरि गाँव की मिट्टी की गंध मन में समाए बिहार से दिल्ली आ कर बस गए सो उनके शेरों में गांव से विलग होने का दर्द स्पष्ट झलकता है, जैसे:
हमारे गांव यादों में यहाँ हर रोज़ मरते हैं
मुझे तो ये शहर ख्वाबों का कब्रिस्तान लगता हैं.
गज़ल सुनाने के लिये जहाँ दर्द देहलवी, साज़ देहलवी और सरफराज़ फराज़ देहलवी जैसे हस्ताक्षर मौजूद हों वहाँ सुनने वालों की कैफियत खुद ब खुद समझी जा सकती है. इन शायरों के कुछ शेर:
दर्द देहलवी
आंसुओं में खून की लाली नज़र आने लगी
अब तो मेरे दर्द का अहसास होना चाहिए
साज़ देहलवी
बागबां को नाज़ था जिस की लताफत पर कभी
हम वही गुल हैं मगर खारों से पहचाने गए
सरफराज़ फराज़ देहलवी
फिरकावन्दों ने चमन में हर तरफ बोए हैं खार
अहले दिल को बीज अब उल्फत का बोना चाहिए
प्रेमचंद सहजवाला अक्सर वतन से जुड़ी शायरी करते हैं सो उन्होंने आजादी के बाद देश के अवाम के मोहभंग को कुछ कुछ इन लफ़्ज़ों में व्यक्त किया:
हमारे नाम आकाओं ने इक परवाज़ लिखी थी
मगर इस अह्द में पंछी हुआ बे आसमां क्यों है
वीरेंदर कमर
ज़िंदगी की डायरी भर चली है वैसे तो
एक वर्क खाली है आओ मैं तुम्हें लिख दूं.
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने सदा की तरह प्रभावशाली शेर सुनाए:
अपने कट जाने से बढ़ कर ये फिकर पेड़ को है
घर परिंदे का भला कैसे उजड़ता देखे
मुश्किलें अपनी बढ़ा देता है इन्सां ऐसे
अपनी गर्दन पे किसी और के चेहरा देखे.
आनंदम अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने अपनी गज़ल में यह भाव रखा कि कलियुग केवल अब नहीं है कलियुग तो तब भी था जब राम और कृष्ण थे. एक शेर:
ना जाने किस ने कलियुग आज के युग को बता डाला
था क्या तब जब युधिष्ठिर अपनी पत्नी हार आया था
गोष्ठी के अंत में जगदीश रावतानी ने सभी कवियों का धन्यवाद किया व घोषित किया कि अगली गोष्ठी हर माह की तरह एक विचार गोष्ठी होगी जिसमें किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर कोई विफ्चारक अपने विचार प्रस्तुत करेगा.
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