‘आनंदम’ ‘आर्ट एक्सीलेंस’ और हिंदी अकादमी की एक यादगार काव्य संध्या
रिपोर्ट – प्रेमचंद सहजवाला
दि. 15 सितंबर 2012 को जगदीश रावतानी की संस्थाओं ‘आनंदम संगीत व साहित्य सभा’ तथा ‘आर्ट एक्सीलेंस’ के साथ ‘हिंदी अकादमी’ के तत्वावधान में दिल्ली के सिंधी-उर्दू अकादमी सभागार में एक यादगार काव्य-संध्या का आयोजन हुआ. कार्यक्रम के प्रथम सत्र की अध्यक्षता मुनव्वर सरहदी ने की तथा मंच पर लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, लालित्य ललित, भूपेंदर कुमार तथा जगदीश रावतानी थे. इस अवसर पर मुनव्वर सरहदी ने जगदीश रावतानी के जन्म दिन की पूर्व-संध्या पर शाल पहना कर उन्हें सम्मानित किया और उपस्थित कवी गणों ने उन्हें जन्म दिन की शुभकामनाये दी. लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने अलग अलग मिज़ाज की रचनाएं सुना कर सभी का दिल जीत लिया . लालित्य ललित ने ज़मीन से जुडी रचनाओं का पाठ किया जिनमे आम आदमी का दर्द मानवीय सरकारों के माध्यम से व्यक्त हुआ. भूपेंदर कुमार और वीरेंदर कमर की रचनाओं ने लोगो की खूब वाह वाही लूटी. मुनव्वर सरहदी हर बार की तरह उपस्थित श्रोताओं को हंसाने में कामयाब रहे. जगदीश रावतानी ने एक सशक्त गज़ल पेश की. एक शेर:
वक़्त की नीव के हिलते ही सिहर जाता है
मौत से डरता है इंसान तो मर जाता है.
दूसरे सत्र में राना प्रताप गनौरी अध्यक्ष रहे तथा सैफ सहरी व जगदीश रावतानी मंच पर उपस्थित थे. इस में शहादत अली निजामी, फैजान आतिफ, दर्द देहलवी, इरफ़ान तालिब, नागेश चन्द्र, रवीन्द्र शर्मा ‘रवि’, आदेश त्यागी, अनिल वर्मा ‘मीत’, लखमी चन्द्र ‘सुमन’ शकील इब्नेनज़र, नूर, नेहा आस, डी.एस.सुधाकर, अर्चना गुप्ता, आरती ‘स्मित’ आदि कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की. कुछ यादगार पंक्तियाँ:
हमारे ज़ब्त का क्यों इम्तिहान लेता है ,
अना के जिस्म में बाकी लिबास रहने दे (शहादत अली निजामी),
ये अहले जौक समझते हैं वक्त की कीमत ,
जो चंद लफ़्ज़ों में किस्सा तमाम करते हैं (फैजान आतिफ).
अख़लाक़ भाईचारा मोहब्बत को आम कर ,
तू आदमी है आदमी वाले ही काम कर (दर्द देहलवी).
ज़माने की नज़रों से माना छुपा है ,
तेरा राज़ लेकिन तुझे तो पता है (नागेश चन्द्र).
हश्र के रोज मुझे तेरी बहुत याद आयी ,
मैं तो जन्नत में भी आयी हूँ तो नाशाद आयी (नेहा आस).
जिस दिन कलम उठा ली थी इन हाथों ने ,
उस दिन से ही मैंने डरना छोड़ दिया (आदेश त्यागी)
कुछ भी हो सकता है हालात से डर लगता है
आदमी अब तो तेरी ज़ात से डर लगता है (रवींद्र शर्मा ‘रवि)
श्री अनिल मीत ने धन्यवाद देते हुए सभी उपस्थित कवियों को कामयाब गोष्टी के लिए बधाई दी .
बाहर बारिश की फुहारों के होते चाय आदि के बाद एक तीसरा और संक्षिप्त सत्र भी चला जिसमें कुछ अन्य वाहवाही भरी रचनाएँ प्रस्तुत हुई. अंत में जगदीश रावतानी ने सभी कवियों श्रोताओं का धन्यवाद किया.विशेष रूप से सिन्धी अकादमी का धन्यवाद किया गया जिनकी बदौलत ये सभागार प्राप्त हुआ