Friday, July 24, 2009
Wednesday, June 17, 2009
from Hind Yugm hide details 1:52 pm (2 minutes ago)
to Anandam music
date Jun 17, 2009 1:52 PM
subject code
mailed-by gmail.com
नई दिल्ली। आनंदम् की 11वीं काव्य गोष्ठी हमेशा की तरह पश्चिम विहार में जगदीश रावतानी जी के निवास स्थान पर संपन्न हुई। पिछली गोष्ठी में जहाँ कवि राकेश खंडेलवाल वाशिंगटन, अमरीका से पधारे थे, वहीं इस बार भी अमरीका के अटलांटा नगर से श्रीमती संध्या भगत की उपस्थिति ने गोष्ठी को अंतर-राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान कर दिया।
कार्यक्रम के चर्चा सत्र में "कविता एवं ग़ज़ल का समाज के प्रति योगदान" विषय पर डॉ. विजय कुमार ने अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि काव्य के माध्यम से कही हुई बातों का समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रेम सहजवाला ने इस विषय पर अपने विचार रखते हुए इस बात को रेखांकित किया कि साहित्य को समाज की जितनी सेवा करनी चाहिए उतनी कई कारणों से हो नहीं पा रही। जगदीश रावतानी ने इस चर्चा को व्यावहारिक मोड़ देते हुए कहा कि हम सभी साहित्यकारों को अपने लेखन के द्वारा समाज में घट रही भ्रष्टाचार की घटनाओं को भी उजागर कर सरकार तक अपनी बात कारगर ढंग से पहुँचानी चाहिए। उदाहरण के लिए आजकल खान-पान की वस्तुओं जैसे दूध, अनाज व फल-सब्जियों तक में जहरीले ससायन मिलाए जा रहे हैं, ऐसे विषयों पर भी रचनाएँ लिखकर विभन्न माध्यमों में प्रकाशित करवाई जाएँ।
दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी शुरू करने से पहले हाल ही में दिवंगत कवियों सर्वश्री ओम प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड सिंह गुज्जर की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन धारण किया गया। जगदीश रावतानी ने श्रद्धांजलि स्वरूप ओम प्रकाश आदित्य की एक हास्य रचना भी सुनाई। तत्पश्चात उपस्थित कवियों ने अपनी रचनाओं से लोगों का मन मोह लिया। कुछ रचनाएँ देखें-
नईम बदायूँनी-
हमसे ज़िक्रे बहार मत कीजे
हमने देखा नहीं बहारों को
मजाज़ अमरोही-
तूने अए चारागर नहीं देखा
देखना था मगर नहीं देखा
दर्द देहलवी-
पहले तो चरागों की कमी से थे परेशाँ
अब इतना उजाला है दिखाई नहीं देता
डॉ. विजय कुमार-
कुछ तो दीदार की ऐ हमनवा सूरत निकले
फिर तेरी याद ने तूफान उठा रक्खा है
जगदीश रावतानी-
था ये बेहतर कि क़त्ल कर देते
रोते-रोते मरा नहीं होता
क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी गर गिरा नहीं होता
भूपेन्द्र कुमार-
है मुश्किल यूँ ख़ुदा की बंदगी में ख़ुद को पा लेना
मगर कहते हैं अब तो ख़ुद को ही अवतार चुटकी में
है इक अरसा लगा मुझे ग़ज़ल का फ़न समझने में
नमन करता हूँ उनको जो कहें अशआर चुटकी में
मनमोहन शर्मा तालिब-
सच्चाई के होठों पे फरिश्तों की दुआ है
सच्चाई का नाम ही ज़माने में ख़ुदा है
प्रेमचंद सहजवाला-
शोरीदा शहर में मुझे आता है ये ख़याल
दिल में ज़रा सी देर को उज़्लत बनी रहे
पंडित प्रेम बरेलवी-
आदमी आदमी को कुचलने लगा
दिल करे भी तो क्या अब करे जुस्तजू
सत्यवान-
दम तोड़ती है कला मेरी रद्दी काग़ज़ के पन्नों पर
वो सजे मंच तालियों की गूँज,
बनते हैं कैसे कलाकार मैं क्या जानूँ
ओ.पी. बिश्नोई सुधाकर-
पेड़ उगाकर हरे भरे, हरियाली को लाएँगे
जीवों की करेंगे रक्षा, सुखद पर्यावरण बनाएँगे
साक्षात भसीन-
आँखों में तैरते ख़ून को, हमने यूँ पढ़ के देखा है
नामुमकिन टलता हादसा, जिसे होने से रोका है
संध्या भगत-
मुझको भी कोख में पलने दे
माँ, मेरा भी ये वास है
सात सपूतों वाली ये माँ
इक आँगन की फिर भी आस है
मुनव्वर सरहदी-
जो तेरी तस्बीह के दाने मुनव्वर रोक है ले
वो तेरा दुश्मन है, ऐसे आश्ना को छोड़ दे
इसके अतिरिक्त फ़ख़रुद्दीन अशरफ तथा शैलेश सक्सैना ने भी अपनी उम्दा रचनाएँ प्रस्तुत की जिन्हें इस गोष्ठी की रिकॉर्डिंग में सुना जा सकता है।
फ़ख़रुद्दीन अशरफ
शैलेश सक्सैना
to Anandam music
date Jun 17, 2009 1:52 PM
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mailed-by gmail.com
नई दिल्ली। आनंदम् की 11वीं काव्य गोष्ठी हमेशा की तरह पश्चिम विहार में जगदीश रावतानी जी के निवास स्थान पर संपन्न हुई। पिछली गोष्ठी में जहाँ कवि राकेश खंडेलवाल वाशिंगटन, अमरीका से पधारे थे, वहीं इस बार भी अमरीका के अटलांटा नगर से श्रीमती संध्या भगत की उपस्थिति ने गोष्ठी को अंतर-राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान कर दिया।
कार्यक्रम के चर्चा सत्र में "कविता एवं ग़ज़ल का समाज के प्रति योगदान" विषय पर डॉ. विजय कुमार ने अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि काव्य के माध्यम से कही हुई बातों का समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रेम सहजवाला ने इस विषय पर अपने विचार रखते हुए इस बात को रेखांकित किया कि साहित्य को समाज की जितनी सेवा करनी चाहिए उतनी कई कारणों से हो नहीं पा रही। जगदीश रावतानी ने इस चर्चा को व्यावहारिक मोड़ देते हुए कहा कि हम सभी साहित्यकारों को अपने लेखन के द्वारा समाज में घट रही भ्रष्टाचार की घटनाओं को भी उजागर कर सरकार तक अपनी बात कारगर ढंग से पहुँचानी चाहिए। उदाहरण के लिए आजकल खान-पान की वस्तुओं जैसे दूध, अनाज व फल-सब्जियों तक में जहरीले ससायन मिलाए जा रहे हैं, ऐसे विषयों पर भी रचनाएँ लिखकर विभन्न माध्यमों में प्रकाशित करवाई जाएँ।
दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी शुरू करने से पहले हाल ही में दिवंगत कवियों सर्वश्री ओम प्रकाश आदित्य, नीरज पुरी और लाड सिंह गुज्जर की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन धारण किया गया। जगदीश रावतानी ने श्रद्धांजलि स्वरूप ओम प्रकाश आदित्य की एक हास्य रचना भी सुनाई। तत्पश्चात उपस्थित कवियों ने अपनी रचनाओं से लोगों का मन मोह लिया। कुछ रचनाएँ देखें-
जगदीश रावतानी-आनंदम के साथ प्रेमचंद सहजवाला |
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हमसे ज़िक्रे बहार मत कीजे
हमने देखा नहीं बहारों को
मजाज़ अमरोही-
तूने अए चारागर नहीं देखा
देखना था मगर नहीं देखा
दर्द देहलवी |
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पहले तो चरागों की कमी से थे परेशाँ
अब इतना उजाला है दिखाई नहीं देता
डॉ. विजय कुमार-
कुछ तो दीदार की ऐ हमनवा सूरत निकले
फिर तेरी याद ने तूफान उठा रक्खा है
जगदीश रावतानी-
था ये बेहतर कि क़त्ल कर देते
रोते-रोते मरा नहीं होता
क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी गर गिरा नहीं होता
भूपेन्द्र कुमार-
है मुश्किल यूँ ख़ुदा की बंदगी में ख़ुद को पा लेना
मगर कहते हैं अब तो ख़ुद को ही अवतार चुटकी में
है इक अरसा लगा मुझे ग़ज़ल का फ़न समझने में
नमन करता हूँ उनको जो कहें अशआर चुटकी में
मनमोहन शर्मा तालिब-
सच्चाई के होठों पे फरिश्तों की दुआ है
सच्चाई का नाम ही ज़माने में ख़ुदा है
प्रेमचंद सहजवाला-
शोरीदा शहर में मुझे आता है ये ख़याल
दिल में ज़रा सी देर को उज़्लत बनी रहे
पंडित प्रेम बरेलवी-
आदमी आदमी को कुचलने लगा
दिल करे भी तो क्या अब करे जुस्तजू
सत्यवान-
दम तोड़ती है कला मेरी रद्दी काग़ज़ के पन्नों पर
वो सजे मंच तालियों की गूँज,
बनते हैं कैसे कलाकार मैं क्या जानूँ
ओ.पी. बिश्नोई सुधाकर-
पेड़ उगाकर हरे भरे, हरियाली को लाएँगे
जीवों की करेंगे रक्षा, सुखद पर्यावरण बनाएँगे
मुनव्वर सरहदी |
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आँखों में तैरते ख़ून को, हमने यूँ पढ़ के देखा है
नामुमकिन टलता हादसा, जिसे होने से रोका है
संध्या भगत-
मुझको भी कोख में पलने दे
माँ, मेरा भी ये वास है
सात सपूतों वाली ये माँ
इक आँगन की फिर भी आस है
मुनव्वर सरहदी-
जो तेरी तस्बीह के दाने मुनव्वर रोक है ले
वो तेरा दुश्मन है, ऐसे आश्ना को छोड़ दे
इसके अतिरिक्त फ़ख़रुद्दीन अशरफ तथा शैलेश सक्सैना ने भी अपनी उम्दा रचनाएँ प्रस्तुत की जिन्हें इस गोष्ठी की रिकॉर्डिंग में सुना जा सकता है।
फ़ख़रुद्दीन अशरफ
शैलेश सक्सैना
स्रोत- हिन्द-युग्मःहिन्दी-ख़बरें
Monday, June 1, 2009
जगदीश रावतानी आनंदम की तरही ग़ज़ल
दिल अगर फूल सा नही होता
यू किसी ने छला नही होताथा ये बेहतर कि कत्ल कर देती
रोते रोते मरा नही होता
दिल में रहते है दिल रुबाओं के
आशिको का पता नही होता
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नही तब तक
ishk जब तक हुआ नही होता
पाप की गठरी हो गई भारी
वरना इतना थका नही होता
होश में रह के ज़िन्दगी जीता
तो यू रुसवा हुआ नही होता
जुर्म हालात करवा देते है
आदमी तो बुरा नही होता
ख़ुद से उल्फत जो कर नही सकता
वो किसी का सगा नही होता
क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी गर गिरा नही होता
Monday, May 18, 2009
आनंदम् की दसवीं काव्य गोष्ठी
रिपोर्ट के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।http://hindi-khabar.hindyugm.com/2009/05/10th-anandam-kavya-gosththi.html
Friday, April 24, 2009
रावतानी की ग़ज़ल
जिंदगी को सजा नही पाया
बोझ इसका उठा नही पाया
खूब चश्मे बदल के देख लिए
तीरगी को हटा नही पाया
प्यार का मैं सबूत क्या देता
चीर कर दिल दिखा नही पाया
जो थका ही नही सज़ा देते
वो खता क्यों बता नही पाया
वो जो बिखरा है तिनके की सूरत
बोझ अपना उठा नही पाया
आईने में खुदा को देखा जब
ख़ुद से उसको जुदा नही पाया
नाम जगदीश है कहा उसने
और कुछ भी बता नही पाया
Wednesday, April 22, 2009
पचास पार कर लिए अब भी इंतज़ार है
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है
गुरुर टूटने पे ही समझ सका सचाई को
जो है तो बस खुदा को ज़िन्दगी पे इख्तिअर है
मेरे लबो पे भी ज़रूर आएगी हसी कभी
न जाने कब से मेरे आईने को इंतज़ार है
मैं नाम के लिए ही भागता रहा तमाम उम्र
वो मिल गया तो दिल मेरा क्यो अब भी बेकरार है
मैं तेरी याद दफ़न भी करू तो तू बता कहा
ke तू ही तू फकत हरेक शकल मैं शुमार है
अभी तो हाथ जोड़ कर जो कह रहा है वोट दो
अवाम को पता है ख़ुद गरज वो होशियार है
डगर डगर नगर नगर मैं भागता रहा मगर
सुकू नही मिला कही न मिल सका करार है
वो क्यो यूं तुल गया है अपनी जान देने के लिए
दुखी है जग से या जुडा खुदा से उसका तार है
कभी तो आएगी मेरे हयात मैं उदासियाँ
बहुत दिनों से दोस्तों को इसका इंतज़ार है
जगदीश रावतानी
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है
गुरुर टूटने पे ही समझ सका सचाई को
जो है तो बस खुदा को ज़िन्दगी पे इख्तिअर है
मेरे लबो पे भी ज़रूर आएगी हसी कभी
न जाने कब से मेरे आईने को इंतज़ार है
मैं नाम के लिए ही भागता रहा तमाम उम्र
वो मिल गया तो दिल मेरा क्यो अब भी बेकरार है
मैं तेरी याद दफ़न भी करू तो तू बता कहा
ke तू ही तू फकत हरेक शकल मैं शुमार है
अभी तो हाथ जोड़ कर जो कह रहा है वोट दो
अवाम को पता है ख़ुद गरज वो होशियार है
डगर डगर नगर नगर मैं भागता रहा मगर
सुकू नही मिला कही न मिल सका करार है
वो क्यो यूं तुल गया है अपनी जान देने के लिए
दुखी है जग से या जुडा खुदा से उसका तार है
कभी तो आएगी मेरे हयात मैं उदासियाँ
बहुत दिनों से दोस्तों को इसका इंतज़ार है
जगदीश रावतानी
Tuesday, April 14, 2009
जगदीश रावतानी - ९वि आनंदम काव्य घोष्टि
आनंदम काव्य गोष्टी १२ तारीख को जगदीश रावतानी के निवास स्थान पर संपन हुई । इसमे शरीक कविगणों के नाम है : अनुराधा शर्मा , संजीव कुमार , सक्षर्था भसीन , मुनवर सरहदी, दरवेश भरती, मनमोहन तालिब, ज़र्फ़ देहलवी, डॉ विजय कुमार, शिलेंदर सक्सेना , प्रेम सहजवाला शहदत्त अली निजामी, दर्द देहलवी, मजाज़ साहिब, नूर्लें कौसर कासमी , रमेश सिद्धार्थ , अख्तर आज़मी, अहमद अली बर्की, दिक्सित बकौरी, डॉ शिव कुमार, अनिल मीत , इंकलाबी जी और जगदीश रावतानी। घोषति की अध्येक्ष्ता दरवेश भरती जी ने की । सचालन जगदीश रावतानी ने किया।
एक सार्थक बहस भी की गयी जिसका विषय था "साहित्य की दशा और दिशा " जिसमे डॉ रमेश सिद्धार्थ , डॉ विजय कुमार, कुमारी अनुराधा शर्मा और डॉ दरवेश भारती ने अपने विचार रखे।
काव्य घोश्ती की शुरुआत से पहले ये दुखद सुचना दी गयी के जाने माने साहित्येकर विष्णु प्रभाकर जी का देहांत हो गया है । एक और दुखद समाचार यह था के श्री बलदेव वंशी जी के जवान पुत्र का भी हाल ही मैं देहांत हो गया .
दो मिनट का मौन धारण कर के उनकी आत्माओं की शान्ति और परिवार के सद्सियो को सदमा बर्दाशत करने की हिमत के लिए प्रार्थना की गयी ।
दो मिनट का मौन धारण कर के उनकी आत्माओं की शान्ति और परिवार के सद्सियो को सदमा बर्दाशत करने की हिमत के लिए प्रार्थना की गयी ।
काव्य घोस्टी मैं पढ़े गए कुछ कवियों के कुछ शेर/ पंक्तिया प्रस्तुत है ।
डॉ अहमद अली बर्की :
वह मैं हु जिसने की उसकी हमेशा नाज़बर्दारी
मगर मैं जब रूठा मानाने तक नही पंहुचा
लगा दी जिसकी खातिर मैंने अपनी जान की बाज़ी
वह मेरी कबर पर आंसू बहाने तक नही पंहुचा
अख्तर आज़मी :
ख़ुद गरज दुनिया है इसमे बाहुनर हो जाइए
आप अपने आप से ख़ुद बाखबर हो जाइये
जिसका साया दूसरो के द्वार के आंगन को मिले
ज़िन्दगी की धुप मैं ऐसा शजर हो जाइये
डॉ विजय कुमार
प्यासी थी ये nazaraN tera दीदार हो गया
नज़रो मैं बस गया तू और तुझसे प्यार हो गया
डॉ दरवेश भारती :
इतनी कड़वी ज़बान न रखो
डोर रिश्तो की टूट जायेगी
जगदीश रावतानी :
जहा जहा मैं गया इक जहा नज़र आया
हरेक शे मैं मुझे इक गुमा नज़र आया
जब आशियाना मेरा खाक हो गया जलकर
पड़ोसियों को मरे तब धुँआ नज़र आया
पड़ोसियों को मरे तब धुँआ नज़र आया
मुनवर सरहदी :
ज़िन्दगी गुज़री है यु तो अपनी फर्जानो के साथ
रूह को राहत मगर मिलती है दीवानों के साथ ]
घोश्ती का समापन दरवेश भरती जी के व्याख्यान और उनकी एक रचना के साथ हुआ । जगदीश रावतानी ने सबका धन्यवाद किया .
Sunday, April 5, 2009
Wednesday, April 1, 2009
Friday, March 20, 2009
जगदीश रावतानी की एक ग़ज़ल
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1956 मे जन्मे जगदीश रावतानी प्रसिद्व कवि हैं और इन्होंने छोटे पर्दे पर कई धारावाहिकों मे अभिनय भी किया है.कई प्रतिभाओं के मालिक हैं जगदीश जी. आज की ग़ज़ल के पाठकों के लिए उनकी एक ग़ज़ल पेश है :
गो मैं तेरे जहाँ मैं ख़ुशी खोजता रहा
लेकिन ग़मों-अलम से सदा आशना रहा
हर कोई आरजू में कि छू ले वो आसमा
इक दूसरे के पंख मगर नोचता रहा
आँखों मैं तेरे अक्स का पैकर तराश कर
आइना रख के सामने मैं जागता रहा
कैसे किसी के दिल में खिलाता वो कोई गुल
जो नफरतों के बीज सदा बीजता रहा
आती नज़र भी क्यूं मुझे मंजिल की रौशनी
छोडे हुए मैं नक्शे कदम देखता रहा
सच है कि मैं किसी से मुहव्बत न कर सका
ता उम्र प्रेम ग्रंथ मगर बांचता रहा
-221 2121 1221 2 12
जगदीश रावतानी की एक ग़ज़ल
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1956 मे जन्मे जगदीश रावतानी प्रसिद्व कवि हैं और इन्होंने छोटे पर्दे पर कई धारावाहिकों मे अभिनय भी किया है.कई प्रतिभाओं के मालिक हैं जगदीश जी. आज की ग़ज़ल के पाठकों के लिए उनकी एक ग़ज़ल पेश है :
गो मैं तेरे जहाँ मैं ख़ुशी खोजता रहा
लेकिन ग़मों-अलम से सदा आशना रहा
हर कोई आरजू में कि छू ले वो आसमा
इक दूसरे के पंख मगर नोचता रहा
आँखों मैं तेरे अक्स का पैकर तराश कर
आइना रख के सामने मैं जागता रहा
कैसे किसी के दिल में खिलाता वो कोई गुल
जो नफरतों के बीज सदा बीजता रहा
आती नज़र भी क्यूं मुझे मंजिल की रौशनी
छोडे हुए मैं नक्शे कदम देखता रहा
सच है कि मैं किसी से मुहव्बत न कर सका
ता उम्र प्रेम ग्रंथ मगर बांचता रहा
-221 2121 1221 2 12
Saturday, March 21, 2009
Monday, February 9, 2009
ANANDAM KAVYA GOSHTI-8TH FEB 09
ANANDAM ORGANIZED A KAVYA GOSHTI ON 8TH FEB 09 AT THE RESIDECE OF ORGANIZATION SECRETARY SH JAGDISH RAWTANI. POETS WHO PARTICIPATED IN THE GOSHTI ARE:
S/SH MUNAVAR SARHADI, RAMESH SIDHARTHA, ZARF DEHLVI, RAMESH THAKUR, SHOBNA MITTAL, SHAILESH SAXENA, DR M TALIB, PANDIT PREM BARAILVI, PREMCHAND SAHEJWALA, BHOOPENDER KUMAR, QAISAR AZIZ, KAILASH DAHIYA, SAKSHAT BHASIN, VEERENDER KAMAR, ASHISH SINHA KASID, JITENDER PREETAM, JAGDISH RAWTANI. THERE WAS GREAT VARIETY OF POETRY IN THE FORM OF GAZAL, KAVITA NAZAM AND DOHA. THE COMBINATION OF NEW TALENTED POETS AND EXPERIENCED POETS WAS WORTH WATCHING. THERE WAS ALSO A LOVEABLE COMBINATION OF HINDI AND URDU POETRY AND THAT WAS ENJOYED AND APPRECIATED BY ONE AND ALL PRESENT IN THE GOSHTI. THE PROGRAMME WAS COMPEERED BY SH PREM SAHEJWALA. AT THE END OF THIS DAY POETRY SESSION SH JAGDISH RAWTANI THANKED EVERY ONE FOR COMING AND MAKING THE EVENING BEAUTIFUL AND MEMORABLE.
S/SH MUNAVAR SARHADI, RAMESH SIDHARTHA, ZARF DEHLVI, RAMESH THAKUR, SHOBNA MITTAL, SHAILESH SAXENA, DR M TALIB, PANDIT PREM BARAILVI, PREMCHAND SAHEJWALA, BHOOPENDER KUMAR, QAISAR AZIZ, KAILASH DAHIYA, SAKSHAT BHASIN, VEERENDER KAMAR, ASHISH SINHA KASID, JITENDER PREETAM, JAGDISH RAWTANI. THERE WAS GREAT VARIETY OF POETRY IN THE FORM OF GAZAL, KAVITA NAZAM AND DOHA. THE COMBINATION OF NEW TALENTED POETS AND EXPERIENCED POETS WAS WORTH WATCHING. THERE WAS ALSO A LOVEABLE COMBINATION OF HINDI AND URDU POETRY AND THAT WAS ENJOYED AND APPRECIATED BY ONE AND ALL PRESENT IN THE GOSHTI. THE PROGRAMME WAS COMPEERED BY SH PREM SAHEJWALA. AT THE END OF THIS DAY POETRY SESSION SH JAGDISH RAWTANI THANKED EVERY ONE FOR COMING AND MAKING THE EVENING BEAUTIFUL AND MEMORABLE.
Sunday, February 1, 2009
ANANDAM - KAVYA GOSHTI- 8TH FEB 09
seemab sultanpuri & Jagdish Rawtani
Seemab Sultanpuri & Kohli Sahib
EVERY SECOND SUNDAY ANANDAM ORGANIZES KAVYA GOSHTI. IN THE MONTH OF FEBURARY KAVYA GOSHTI WILL TAKE PLACE AT 3.30 PM ON 8TH INSTANT AT THE RESIDENCE OF JAGDISH RAWTANI, PRESIDENT, ANANDAM SAHITYA AND SANGEET SANSTHA, BS-19 SHIVA ENCLAVE, A/4 PASCHIM VIHAR NEW DELHI. TEL:9811150638, 011-25252635. ALL ARE CORDIALLY INVITED, FEW PHOTOGRAPHS FROM PREVIOUS GOSHTI
JAGDISH RAWTANI HAS ACTED IN MORE THAN FORTY SERIALS.FEW OF THEM ARE "PAL CHIN" DIRECTED BY NEENA GUPTA, "RAJDHANI" DIRECTED BY TIGMANSHU, "JASOOS VIJAY " A BBC PRODUCTION, "ALVIDA DARLING" DIRECTED BY MAHADEVAN. HE IS ALSO A STAGE ACTOR AND HAS GOT HIS OWN GROUP UNDER THE BANNER OF "ART EXCELLENCE" AS A WRITER HE HAS WRITTEN APPROXIMATELY TWENTY SERIALS/TELEFILMS AND MANY DOCUMENTARIES AND SHORT FILMS. FEW OF HIS SERIAL/TELEFILM NAMES GO LIKE THIS; PAAPA JALDI AA JAANA, NAI DISHA KI AUR, BADLAV, AKAYLI, NAINSUKH, CHUNA HAI AASMAAN. JAGDISH RAWTANI HAS PENNED LYRICS FOR SERIALS AND TELEFILMS. FEW NAMES AMONG THEM ARE SABAK, NAINSUKH, JEEVAN SANGHARSH, AFLATOON. HE WAS AN EDITOR OF ARDENT NEWS AND VIEWS, A WEEKLY (ENGLISH/HINDI)NEWS PAPER AND ALSO EDITED SINDHI NEWS PAPER CALLED "SINDHI GULISTAN" THIS MULTIFACETED PERSONALITY IS A GOOD SINGER AS WELL. HE HAS WORKED AS AN ANNOUNCER ON RADIO AND ANCHORED MANY STAGE SHOWS. HIS POEMS/GAZALS/BHAJANS ARE PUBLISHED REGULARY IN THE NEWS PAPERS AND MAGZINES. HE HAS HIS OWN MUSIC SCHOOL CALLED "ANANDAM" AND TEACHES SINGING THERE. ALONGWITH SINGING BHAJANS HIS "PARVACHANS" ARE HEARD WITH LOT OF CONCENTRATION AND ENJOYMENT.
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