Friday, March 20, 2009
जगदीश रावतानी की एक ग़ज़ल
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1956 मे जन्मे जगदीश रावतानी प्रसिद्व कवि हैं और इन्होंने छोटे पर्दे पर कई धारावाहिकों मे अभिनय भी किया है.कई प्रतिभाओं के मालिक हैं जगदीश जी. आज की ग़ज़ल के पाठकों के लिए उनकी एक ग़ज़ल पेश है :
गो मैं तेरे जहाँ मैं ख़ुशी खोजता रहा
लेकिन ग़मों-अलम से सदा आशना रहा
हर कोई आरजू में कि छू ले वो आसमा
इक दूसरे के पंख मगर नोचता रहा
आँखों मैं तेरे अक्स का पैकर तराश कर
आइना रख के सामने मैं जागता रहा
कैसे किसी के दिल में खिलाता वो कोई गुल
जो नफरतों के बीज सदा बीजता रहा
आती नज़र भी क्यूं मुझे मंजिल की रौशनी
छोडे हुए मैं नक्शे कदम देखता रहा
सच है कि मैं किसी से मुहव्बत न कर सका
ता उम्र प्रेम ग्रंथ मगर बांचता रहा
-221 2121 1221 2 12
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