रावतानी की ग़ज़ल
जिंदगी को सजा नही पाया
बोझ इसका उठा नही पाया
खूब चश्मे बदल के देख लिए
तीरगी को हटा नही पाया
प्यार का मैं सबूत क्या देता
चीर कर दिल दिखा नही पाया
जो थका ही नही सज़ा देते
वो खता क्यों बता नही पाया
वो जो बिखरा है तिनके की सूरत
बोझ अपना उठा नही पाया
आईने में खुदा को देखा जब
ख़ुद से उसको जुदा नही पाया
नाम जगदीश है कहा उसने
और कुछ भी बता नही पाया