हमें दिल टूटने का गम नहीं है, मगर ये हादसा कुछ कम नहीं है
नई दिल्ली : जगदीश रावतानी की संस्था ‘आनंदम संगीत व साहित्य सभा’ की मासिक गोष्ठी नई दिल्ली स्थित हिमालय हाऊस के मैक्स न्यूयार्क सभागार में. 14 मई, 2012 को आयोजित की गयी। इसमें दर्द देहलवी, साज़ देहलवी, सरफराज़ देहलवी, मजाज अमरोहवी, मासूम गाजियाबादी, जमील हापुडी, नौशाद ‘समर’, इरफ़ान ग़ालिब, डॉ. अशोक ‘मधुप’, रूपा सिंह, पूजा प्रजापति, भूपेंद्र कुमार शोभना ‘शुभी’, नागेश चन्द्र, वेदप्रकाश, वीरेंद्र कमर आदि कवियों और शायरों ने हिस्सा लिया। गोष्ठी की अध्यक्षता प्रसिद्ध शायर नाज़ सिकंदाराबादी ने की। मासूम गाजियाबादी का एक शेर-
हिफाज़त चरागों की और दामनों से
वो अंजाम शायद नहीं जानते हैं।
गज़ल का रंग जम जाए तो वाह वाह के स्वर गूँज उठते हैं, जैसे मजाज अमरोहवी का यह शेर-
जीने के आरज़ू ने तो मरने नहीं दिया
पर ज़िन्दगी से हाथ मिलाने के दिन गये।
साज़ देहलवी उर्दू के अपने उम्दा रंग में नज़र आये-
जगाओ ना अभी मुन्कर नाकीरो*
मैं लौटा हूँ थका हारा सफर से।
(* मुन्कर नकीर दो फ़रिश्ते हैं जो मरने के बाद कब्र में आ कर मरहूम से नाम आदि पूछते हैं)।
दर्द देहलवी-
आ कर तू इंतज़ार की शिद्दत तो देख ले
मेरी नज़र की गर्मी मिलेगी किवाड में।
आदेश त्यागी-
छूटी खुदी और मुझ को खुदा आ गया नज़र
ये शायरी से क्या मुझे इरफ़ान हो गया।
डॉ. अशोक मधुप ‘आनंदम’ की गोष्ठी में पहली बार आए थे और उन्होंने एक शानदार गज़ल पेश की-
आग दिल में लगी किस कदर देखिये
जल गया है मेरा घर का घर देखिये
हकपरास्तों का मैं राहबर था कभी
आज नेज़े पे है मेरा सर देखिये।
इरफ़ान ग़ालिब-
अज़ीज़ भाई खफा सा दिखाई देता है
मेरे ही खून का प्यासा दिखाई देता है
उरूज़े-तिश्नगी या है फरेबे-हुस्ने-नज़र
क्यों रेगज़ार भी दरिया दिखाई देता है।
वीरेंद्र ‘कमर’-
हमें दिल टूटने का गम नहीं है
मगर ये हादसा कुछ कम नहीं है
अता कुछ और कर ज़ख्मों की दौलत
अभी दामन हमारा नम नहीं है।
कवयित्री शोभना ‘शुभी’ ने सशक्त कविता पेश की-
जिन आखों की तारीफ़ में उन्होंने कसीदे पढ़ दिए/ न रहें खाली यह सोच कर आँसू भर दिए…
पूजा प्रजापति-
कितना अच्छा होता जो दिल ना बनाता खुदा/तो ना शिकवा होता ना शिकायत ना कोई होता खुदा…
रूपा सिंह-
धूप धधकती कौंधती खिलखिलाती/अंधेरों को चीरती रौशन करती/… मेरी उम्र भी एक धूप थी…
नागेश चन्द्र-
और नहीं कुछ भी मन में/ आ जाओ तुम जीवन में
भूपेन्द्र कुमार-
सच्चे मानव के हाथों में पड़ती देखी हथकड़ियाँ
क्यों भ्रष्टाचारी की गर्दन का फंदा ढीला ढाला है।
‘आनंदम’ संस्थापक अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने अपने किसी मरहूम दोस्त को श्रद्धांजलि देते हुए एक मार्मिक कविता पढ़ी। गोष्ठी के अंत उन्होंने सभी उपस्थित कवियों-शायरों का धन्यवाद किया। गोष्ठी का संचालन वीरेंद्र ‘कमर’ ने किया।
प्रस्तुति : प्रेमचंद सहजवाला
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