Sunday, February 19, 2012






उड़ानें भर रहे हैं लम्‍बी लम्‍बी, परिंदे आबोदाना ढूंढते हैं


नई दिल्‍ली : ‘आनंदम संगीत व साहित्य सभा’ की फरवरी माह की गोष्ठी 13 फरवरी, 2012 को कस्तूरबा गाँधी मार्ग स्थित हिमालय हाऊस के मैक्स न्यूयॉर्क के सभागार में आयोजित हुई। इसमें मुन्नवर सरहदी विशिष्ट कवि थे और उनके अतिरिक्त लाल बिहारी ‘लाल’, उमर हनीपा ‘लखीम्पुरी’, सैफ सहरी, नागेश चन्द्र, आशीष सिन्हा ‘कासिद’, हमीद जैदी, साज़ देहलवी, रमेश भाम्भानी, मासूम गाजियाबादी, मजाज़ अमरोहवी आदि कवियों ने भाग लिया।
मुन्नवर सरहदी वैसे हास्य की शायरी के लिये प्रसिद्ध हैं, पर इस बार उन्होंने कुछ गंभीर नज्में भी सुनाईं। जैसे-
हम सुनाते है तुम्हें इक दास्ताने मुख़्तसर
देश प्यारा था जिन्हें वे देश के प्यारे गए
जंगे-आजादी में हिंसा और अहिंसा कुछ नहीं
खुद गरज़ ज़िंदा रहे और बेगरज मारे गए।

मजाज़ अमरोहवी हमेशा की तरह गज़ल के रंग में रहे। उनका एक शेर-
उड़ानें भर रहे हैं लम्‍बी लम्‍बी
परिंदे आबोदाना ढूंढते हैं।

गज़ल में साज़ देहलवी का जवाब नहीं। उन्होंने एक सशक्त गज़ल सुनाई-
इतना बेताब ना हो क़र्ज़ की पगड़ी के लिये
रहन में आबरू और सूद को सर जाता है.

गज़ल का एक और रंग-
आँखों में जब तक है जगमग गाँव के गलियारों की
फीकी है तब तक हर रौनक इन शहरी चौबारों की। (नागेश चन्द्र).

मासूम गाजियाबादी ने सुनाया-
भीख ठुकरा दी उस शख्स की एक भिखारिन ने यह कह कर
तेरे हाथों में इमदाद है तेरी आँखों में उन्माद है

दर्द देहलवी ने कहा-
दरिया है हम हमारी तू दरियादिली ना पूछ
जिस से मिले हैं उसको समुन्दर बना दिया.

अंत में ‘आनंदम’ संस्थापक अध्यक्ष ने सभी कवियों का धन्यवाद करके गोष्ठी संपन्न की।
प्रस्‍तुति : प्रेमचंद सहजवाला

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