Friday, April 24, 2009

रावतानी की ग़ज़ल

जिंदगी को सजा नही पाया

बोझ इसका उठा नही पाया

खूब चश्मे बदल के देख लिए

तीरगी को हटा नही पाया

प्यार का मैं सबूत क्या देता

चीर कर दिल दिखा नही पाया

जो थका ही नही सज़ा देते

वो खता क्यों बता नही पाया

वो जो बिखरा है तिनके की सूरत

बोझ अपना उठा नही पाया

आईने में खुदा को देखा जब

ख़ुद से उसको जुदा नही पाया

नाम जगदीश है कहा उसने

और कुछ भी बता नही पाया