Monday, June 1, 2009

जगदीश रावतानी आनंदम की तरही ग़ज़ल

दिल अगर फूल सा नही होता

यू किसी ने छला नही होता


था ये बेहतर कि कत्ल कर देती
रोते रोते मरा नही होता


दिल में रहते है दिल रुबाओं के
आशिको का पता नही होता

ज़िन्दगी ज़िन्दगी नही तब तक
ishk जब तक हुआ नही होता


पाप की गठरी हो गई भारी
वरना इतना थका नही होता


होश में रह के ज़िन्दगी जीता
तो यू रुसवा हुआ नही होता


जुर्म हालात करवा देते है
आदमी तो बुरा नही होता


ख़ुद से उल्फत जो कर नही सकता
वो किसी का सगा नही होता

क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी गर गिरा नही होता

6 comments:

दिगम्बर नासवा said...

आपकी ग़ज़लें पहले भी पढ़ी हैं.............जादू है आपकी कलम में..................कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाना होगा...........बस प्रणाम है हमारा

राजेंद्र माहेश्वरी said...

जुर्म हालात करवा देते है
आदमी तो बुरा नही होता

मनुष्य और कुछ नहीं, मात्र भटका हुआ देवता है।

Unknown said...

सुस्वागतम्...

रवि कुमार, रावतभाटा said...

शुभकामनाएं...

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

manbhavan.narayan narayan

Pritishi said...

पाप की गठरी हो गई भारी
वरना इतना थका नही होता

होश में रह के ज़िन्दगी जीता
तो यू रुसवा हुआ नही होता

क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी गर गिरा नही होता


Yah ashaar bahut achche lage.
Kripaya comments-se word-verification hatayein.

Pranaam
RC