Thursday, March 15, 2012




आनंदम की मार्च गोष्ठी के अनेक रंग
रिपोर्ट – आनंदम रिपोर्ट अनुभाग
जगदीश रावतानी की संस्था ‘आनंदम संगीत व साहित्य सभा’ की मार्च माह की गोष्ठी 12 मार्च 2012 को नई दिल्ली के कस्तूरबा गाँधी मार्ग स्थित हिमालय हाऊस में संपन्न हुई. इस गोष्ठी में मजाज अमरोहवी, हमीद हुसैन ‘हमदम’, कर्नल पूरण चंद सेठी प्रेमचंद सहजवाला मुनव्वर सरहदी शैलेश सक्सेना नागेश चन्द्र जाम बिजनौरी अबरार जावेद कीरतपुरी सैफ सहरी दर्द देहलवी ममता किरण लक्ष्मीशंकर वाजपेयी भूपेंद्र कुमार एस.एच.आर भरी अनिल वर्मा मीत आदेश त्यागी समर हयात व शकील इब्ने नज़र व अनिल वर्मा ‘मीत’ आदि ने भाग लिया.
हर माह की तरह इस बार भी राज गज़ल के ही रहा. एक से बढ़ कर एक बेह्तरीन गजलें पेश की गईं. जैसे:
करता था बंदोबस्त जो लोगों के रिज्क का
वह शख्स जंगे-भूख को हार भी खेत में (दर्द देहलवी).
ज़माना हमको फरामोश कर नहीं सकता
हमारा नाम है तारिख के हवालों में (सैफ सहरी)
मुहब्बत में अब रंग आने लगा है
कि वो मुझ से नज़रें चुराने लगा है (अनिल वर्मा ‘मीत’)
मैं पत्थरों के शहर में बहुत उदास था मगर
ये कौन मेरी जिंदगी से आइना बना गया (अबुज़र नावेद).
मुनव्वर सरहदी हर बार किसी ना किसी नए रंग में रंगे रहते हैं. उनका एक शेर:
हिज्र की रात ने झुलसाया है यूं मेरा बदन
अब तो बरसात का पानी भी जलाता है मुझे.
प्रेमचंद सहजवाला:
सूरज की रौशनी तो सरकती रही मगर,
याद आते हैं वो छोटे से साये कभी कभी
ममता किरण तरही गजलें लिखने में भी महारत रखती हैं. ग़ालिब की अमर गज़ल ‘रहिये अब ऐसी जगह..’ पर उन्होंने एक शानदार गज़ल पेश की:
मुझको आजादी मिली उड़ने की छू लूं आसमां
अब तमन्ना पर मेरी बंदिश यहाँ कोई नहीं
गज़ल के माहौल से प्रेरित हो कर नागेश चन्द्र भी इन दिनों गजलें लिख रहे हैं. उन्होंने भी एक गज़ल सुनाई जिस का एक शेर है:
बाद मुद्दत के आये यूं घर में
जैसे आए बहार पतझर में
शायर साज़ देहलवी लखनऊ के एक मुशायरे से लौटते हुए इस गोष्ठी में भी आए और एक गज़ल पेश की:
चढ़ते हुए बुलंदियां रख रास्तों को याद
वर्ना ज़मीं पे लौट के आया ना जाएगा.
समर हयात नौगांवीं:
बख्श कर दौलत किसी को और किसी से छीन कर
ऐसे भी लेता है राजिक बंदगी का इन्तिहाँ
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने एक असरदार रचना पेश की;
रौशनी की तलाश करता हूँ, जिंदगी की तलाश करता हूँ
चेहरों के इस विराट जंगल में आदमी की तलाश करता हूँ.
अंत में आनंदम अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने सभी कवियों शायरों का धन्यवाद कर के गोष्ठी संपन्न की.

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